भदोही कश्मीर दोनों का साथ कालीन उद्योग नयी उचाई देगा

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कश्मीर और भदोही दोनो ही जगहों पर कालीन एक सांस्कृतिक विरासत और परम्परा है

भदोही /कश्मीर  वैश्विक स्तर पर भारतीय कालीन उद्योग की अलग पहचान है खासकर उत्तर प्रदेश के भदोही -मिर्ज़ापुर क्षेत्र और कश्मीर की निर्मित खूबसूरत कालीनों की बात ही कुछ और है l जम्मू कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनने और धारा 35 ए खत्म होने से कश्मीर से कालीन निर्यात और निर्माण में आने वाले सालो में इजाफा होने की सम्भावना है साथ ही भदोही की जो तकनीक है वह भी कश्मीर ट्रांसफर होगी जिससे वहां का कारोबार तो बढ़ेगा ही साथ ही वहां पर बड़ी संख्या में रोजगार का सृजन भी होगा l

केंद्र सरकार द्वारा धारा 370 हटाये जाने के बाद कश्मीर में रोजगार के जरिये खुशहाली का रास्ता भदोही से निकल सकता है। इसका रास्ता कालीन उद्योग से निकल सकता है क्योंकि कश्मीर और भदोही दोनो ही जगहों पर कालीन एक सांस्कृतिक विरासत और परम्परा है। ऐसे में तकनीक का आदान प्रदान कर कश्मीर में कालीन के जरिये रोजगार को बढ़ावा दिया जा सकता। कश्मीर में बहुत ही हाई क्वालिटी के हस्तनिर्मित कालीन बनते हैं जिसके बहुत महंगे होने के कारण उसके मांग में भारी कमी आयी है ऐसे में भदोही के कालीनों का निर्माण कश्मीर में होने से वहां के लोगों को रोजगार मिल सकता है। भदोही और कश्मीर कालीन के बड़े निर्माता है। यहां की अर्थव्यस्था कालीन निर्यात और निर्माण पर निर्भर है। दोनो की सांकृतिक विरासत है, ऐसे दोनो के बीच की दूरी कम होने से देश को कश्मीर से जोड़ने में कालीन एक अहम भूमिका निभाएगी। भदोही के कालीन उद्योग से जुड़े लोग सरकार के इस निर्णय का स्वागत करते हुए हुए मानते हैं कि कालीन दोनो जगहों की सांस्कृतिक विरासत है। जहाँ लाखो लोग इस रोजगार से जुड़कर कला संस्कृत के साथ इस हस्तकला से पूरी दुनिया मे अपनी पहचान बना रखी है। धारा 370 के कारण जहां कश्मीर में बेरोजगारी बढ़ी और वहां के उद्योग धंधे पर प्रतिकूल असर पड़ा है इससे यह उद्योग वहां सिमटता जा रहा है, लोग बेरोजगार हो रहे थे। अब केंद्र सरकार के निर्णय से जनपद में बनने वाले कालीन और कश्मीर में बनने वाले कालीन के बीच व्यापार बढ़ सकता है। वही दोनो के बीच तकनीकी का आदान प्रदान भी हो सकेगा। भदोही का कालीन लो नॉट का बनाता है वही कश्मीर के कारीगर बहुत अच्छी क्वालिटी के हाई नॉट सिल्क कारपेट का निर्माण करते है। लेकिन कश्मीर के कालीन की मांग लगातार घट रही है। ऐसे में माना जा रहा दोनो के बीच मे दूरी घटने से दोनों अपने कालीन के निर्माण और निर्यात में सहयोग करेंगे तो इससे दोनों जगह रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। लोगो का मानना है दोनो के बीच कालीन एक पुल का काम काम करेगा ।। इसे लेकर भारतीय कालीन प्रौधोगिकी संस्थान के निदेशक आलोक कुमार का मानना है कि भदोही और कश्मीर के कालीन के तकनीक को आपस मे ट्रांसफर कर रोजगार बढ़ाया जा सकता है। कश्मीर में हाई नॉट का कालीन बनता है ऐसे में वहां के लोग यहां की कालीनों को आसानी से और कम समय मे बना सकते हैं। इससे वहां रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। इसे लेकर कालीन निर्यात संवर्धन परिषद के अध्यक्ष सिद्धनाथ सिंह का मानना है कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद आवागमन आसान होगा। बायर, सप्लायर में एक भय रहता था, अनिशिचता के कारण वहां लोग जाने से बचते थे, वह खत्म होगा। इसी कारण बहुत सारे कश्मीर के निर्यातकों ने दिल्ली में अपना ऑफिस खोल लिया था और वहीं से काम करने लगे थे। कश्मीर का कालीन काफी अच्छी क्वालिटी को होता है। वहां यह काम ज्यादातर ज्यादातर औरतें करती है, जो बहुत अच्छा कालीन बनाती हैं। उनके काम में काफी सफाई है, लेकिन अब वहां काम खत्म होने से उन्हें काम की आवश्यकता है। इस निर्णय के बाद ट्रेड बढ़ेगा। हमारा रिश्ता पहले से भी अच्छा था और भी मजबूत होगा। झिझक खत्म हो जाएगी, आदान प्रदान बढ़ेगा। इधर कई वर्षों में कश्मीर के सिल्क का निर्यात 500 करोड़ के आसपास था लजो लगातार घट रहा था, लेकिन इस निर्णय के बाद आपसी सामंजस्य से वहां का उद्योग बढेगा।

कश्मीर का कालीन उद्योग समय से कदम नहीं मिला पाया जिसकी बड़ी वजह 370 का होना माना जा रहा है राजीव मौर्या कालीन शिपिंग व्यसायी का ने बताया की   स्थिति धरा ३७० की वजह से वहा के निर्यातक अपना व्यापार दिल्ली से आकर करते थे निर्यातक जाबिर अंसारी का का कहना है की कश्मीर से 370 हटने की वजह से भदोही से रिश्ता और मजबूत होगा उद्योग की तकनीक ट्रांसफर होने से अधिक लाभ जम्मू कश्मीर को मिलेगा क्योकि भदोही से अच्छी उच्च क्वालिटी की कालीन कश्मीर में बनती है जिस वजह से वहां के बुनकर आसानी से भदोही की कालीन का निर्माण सीख सकते है l  दिलीप कुमार गुप्ता कालीन कारोबारीकश्मीर में सिल्क की कालीन का निर्माण होता है जबकि भदोही परिक्षेत्र में उलेन और कॉटन से कालीन का निर्माण किया जाता है l जानकारों का मानना है की अगर दोनों इलाको के लोगो को ट्रेनिंग दी जाये तो तकनीक ट्रांसफर होगी जिससे कश्मीर में भदोही की तकनीक पहुँचने से वहां के लोगो को ज्यादा लाभ मिलेगा और भदोही के कारोबारी भी सिल्क की कालीन का निर्माण कर सकते है l

आलोक कुमार, निदेशक, भारतीय कालीन प्रौधोगिकी संस्थान तकनीक का आदान प्रदान कर कश्मीर में कालीन के जरिये रोजगार को बढ़ावा दिया जा सकता। कश्मीर में बहुत ही हाई क्वालिटी के हस्तनिर्मित कालीन बनते हैं जिसके बहुत महंगे होने के कारण उसके मांग में भारी कमी आयी है ऐसे में भदोही के कालीनों का निर्माण कश्मीर में होने से वहां के लोगों को रोजगार मिल सकता है। भदोही और कश्मीर कालीन के बड़े निर्माता है।  वही दोनो के बीच तकनीकी का आदान प्रदान भी हो सकेगा। भदोही का कालीन लो नॉट का बनाता है वही कश्मीर के कारीगर बहुत अच्छी क्वालिटी के हाई नॉट सिल्क कारपेट का निर्माण करते है। लेकिन कश्मीर के कालीन की मांग लगातार घट रही है। ऐसे में माना जा रहा दोनो के बीच मे दूरी घटने से दोनों अपने कालीन के निर्माण और निर्यात में सहयोग करेंगे तो इससे दोनों जगह रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।

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