पानीपत के उद्योग पर चीन की मार, केंद्र लाचार

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अमृतसर से उजड़ों ने दिलायी औद्योगिक नगरी की पहचान

पानीपत, 
पानीपत की पहली लड़ाई, दूसरी लड़ाई और तीसरी लड़ाई। 1984 तक स्कूली बच्चे पढ़ते रहे यही पढ़ाई। हाथी समेत समाधिस्थ इब्राहिम लोदी की कब्र और लड़ाईयों के इतिहास को कलेजे में समेटे पानीपत दरअसल एक शांत और उद्योग व्यापार के लिए बहुत उपयुक्त शहर है-यह बात सबसे अच्छी तरह महसूस की उग्रवाद के दौरान पीडि़त पंजाब के कंबल-कपड़ा कारोबारियों ने। 1984 के उपद्र्रवों के बाद अशांत अमृतसर के कंबल कारोबारियों और मजदूरों को पानीपत की लोकेशन और शांत वातावरण रास आ गए। 1947 में विभाजन के दौरान यहां बसे पाकिस्तान के हैदराबादियों ने पानीपत में हैंडलूम और दरी बुनकरों के कुटीर उद्योग के बीज डाल रखे थे। सोने में सुहागा मिला और देखते ही देखते कालीन, कंबल और हैंडलूम नगरी के रूप में देश के नक्शे पर स्थापित हो गया पानीपत। कई देशों में निर्यात के साथ-साथ आज भारतीय सेना भी ओढ़ रही है पानीपत के बने कंबल।
राजनीतिक उपेक्षा
पानीपत को देश ही नहीं अमेरिका, आस्ट्रेलिया, कनाडा, जापान, ब्राजील तक कंबल, दरी, गलीचा और हैंडलूम के शहर के रूप में स्थापित करने वाले कारोबारियों को अफसोस है कि 20 साल तक फलते-फूलते पानीपत को राजनीति की नजर लग गई। पानीपत के कंबल-कालीन उद्योग पर चीन का ग्रहण लग गया है, जबकि केंद्र सरकार विश्व व्यापार संगठन की दुहाई देते हुए लाचार सी दिख रही है। आम तौर पर राजनीति से दूर रहने वाले उद्यमियों का दर्द चुनावी मौसम में छलक आया है। यही नहीं, हरियाणा के पॉवर हाउस पानीपत में ही उद्यमियों को बड़ी शिकायत है बिजली की। उन्हें बिजली मिलती नहीं, जो मिलती है, वह बेहद महंगी। पानीपत के इन्हीं उद्योगों पर निर्भर हैं 2 लाख से भी ज्यादा कामगार, जिसमें करीब डेढ़ लाख मुस्लिम हैं, जो माने जाते हैं सत्तारूढ कांग्रेस का वोट बैंक, और लगातार जिता रहे हैं कांग्रेसी ब्राह्मïण उम्मीदवारों को।
केंद्र और राज्य सरकार को तमाम तरह के टैक्स, आयात निर्यात की बदौलत बेशुमार दौलत दे चुका पानीपत राजनीतिक उपेक्षा का शिकार हो गया। पानीपत से कोई बड़ा नेता उभरा नहीं। वोटों की राजनीति में उद्यमियों की पुकार घुट कर रह गई और दम तोडऩे लगी हैं औद्योगिक इकाइयां। सुनसान होते औद्योगिक प्लाटों पर उग रहे हैं मैरेज व बैंक्वेट हाल। औद्योगीकरण और एनसीआर में शुमार होने के कारण पानीपत की आबादी 10 साल में दो गुनी से भी ज्यादा हो गई।
किंतु शहर का आकार बढ़ाने व आबादी दबाव झेलने की प्लानिंग में सरकार फेल रही। शहर की व्यवस्था का आलम यह है कि फ्लाईओवर के नीचे सुबह से लेकर शाम तक जाम ही जाम मिलता है। शहर का इकलौता चौराहा संजय चौक ट्रैफिक को  संभाल नहीं पा रहा है। सीवर व्यवस्था आधे शहर में पंगु है।
जनरेटरों के शोर में दबी पॉवरलूम की आवाज: हरियाणा गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के उपाध्यक्ष और इंडस्ट्रियल एसोसिएशन सेक्टर 25 के अध्यक्ष हरचरण सिंह धम्मू लोकसभा चुनावों की चर्चा से ही खिन्न हो जाते हैं। कहते हैं कि जनरेटरों के शोर में दबती पावरलूम की आवाज किसे सुनाई देने वाली है। किस पार्टी को अपना मानें, पानीपत की रग्स, टेप्स्ट्री, हैंडलूम व ब्लैंकेट इंडस्ट्री बीते 10 साल के दौरान लगातार दम तोड़ रही है। आप खुद देख लो जी, जनरेटर चल रहा है। बिजली कहां है और बिजली ही तो इंडस्ट्री का खून है। जर्जर तार, ट्रांसफार्मर बदले नहीं जाते, 30 साल पुराने इन्फ्रास्ट्रक्चर पर चल रहा है इंडस्ट्रियल इलाका। राजनीति के मारे पंजाबियों ने बनाया पानीपत को दूसरा अमृतसर, दूजा (पाकिस्तानी) हैदराबाद। आज राजनीति ही हमारे पेट पर लात मार रही है और टैक्स भी वसूलने में आगे है। बिजली के रेट दो गुने कर दिये, ऊपर से मिलती भी नहीं। हमने चीन से कुछ मशीनरी आयात की, उसके एवज में हमें छूट नहीं मिली। कहते हैं लेनदेन रुपये में हुआ, डालर में किया होता तो मिलती छूट। पानीपत ने पावरलूम और रग्स इंडस्ट्री के लिए कलपुर्जे, मशीनरी निर्माण में भी खुद को स्थापित किया किंतु केंद्र व राज्य सरकारों की नीतियां इतनी बिगड़ गई हैं कि कब लोहा महंगा हो जाए, कब बिजली और कब डीजल पता ही नहीं चलता। लोहा एकदम से 20 से 50 रुपये तक उछल गया। हमारी कमर टूट गई और दो साल इंडस्ट्री उठ ही नहीं पाई।
गुजरात में स्थिति बेहतर : एक्सपोर्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे कारोबारी राम निवास गुप्ता कहते हैं कि राजनीति करने वालों को दूर की सोचकर चलना चाहिए। अब वोटर भी पढ़ा-लिखा है, सोच कर ही वोट देगा। गुजरात में मेरे भांजे ने एक यूनिट लगाई। डिपार्टमेंट से प्रॉपर रिस्पांस मिला। फिर भी हरियाणा कल्चर का असर, सोचा कि चीफ सेक्रेटरी से मिल लें। बगैर किसी अप्रोच के मुलाकात हो गई और उन्होंने पूछा कि क्या कोई समस्या है। भांजे ने कहा नहीं अभी तो नहीं। चीफ सेक्रेटरी ने कहा कि समस्या आएगी भी नहीं। क्योंकि गुजरात में ऊपर बैठा अफसर नीचे वाले अफसर को यह नहीं बोलता कि इनका काम कर देना। वह तो पूछता है कि इन सज्जन को मेरे पास ऊपर क्यों आना पड़ा। यह अप्रोच का फर्क है।
गुप्ता कहते हैं कि पानीपत से 3 हजार करोड़ का एक्सपोर्ट होता है। पानीपत केंद्र की पालिसी ऐसी कि चीन का माल धड़ल्ले से आ रहा है, यही पैक होता है और फिर पानीपत के माल के नाम पर भेजा जा रहा है।  चीन की सरकार ने इंडस्ट्रियल एरिया बहुत ही सुनियोजित ढंग से विकसित किये हैं। जो व्यक्ति चीन घूमकर पानीपत पहुंचता है, वहां सौ पचास एकड़ में विकसित इंडस्ट्री देखने के बाद पानीपत के छोटे-छोटे प्लाटों में गिचपिच यूनिटें उन्हें कम ही आकर्षित करती हैं। हम बड़े प्लाट में शिफ्ट करना चाहें तो लैंड यूज चेंज (सीएलयू) के लफड़े में फंस जाते हैं। जब पानीपत में भी आईएसएस बैठते हैं और पंचकूला-चंडीगढ़ मुख्यालय में भी तो सीएलयू का अधिकार पानीपत के अफसर को क्यों नहीं देते। यहां से चंडीगढ़ दौड़ में ही फाइलें थक जाती हैं। खेती के बाद सबसे ज्यादा रोजगार और कमाई इंडस्ट्री दे रही है। एक्सपोर्टर दे रहा है, जब खेती के लिए सीएलयू नहीं चाहिए तो एक्सपोर्टर के लिए क्यूं। इसी तरह अन्य नीतियों में संशोधन नहीं किया तो चीन हमारी इंडस्ट्रीज को हड़प जाएगा। केंद्र में जो भी सरकार आये, उसे सोचना ही होगा।
गुजरात में जनरेटर नहीं दिखते, फिर कौन नंबर वन : श्री भगवान अग्रवाल इंडस्ट्रियल एस्टेट, सेक्टर 29 के महामंत्री हैं और पानीपत इंडस्ट्रियल एरिया में सबसे अच्छी सड़क व सीवर व्यवस्था इसी सेक्टर में कराने के लिए जाने जाते हैं। श्री अग्रवाल कहते हैं कि सबसे अच्छी सड़क व सीवर सरकार की कृपा नहीं है, इसके लिए मैंने अफसरों की नाक में दम कर दिया था और खराब सड़क बना रहे ठेकेदार को भगा दिया था। अडऩे और लडऩे के कारण हमें मिली सबसे अच्छी सड़क। किंतु अच्छी सड़क का क्या करें, पूरे पानीपत की सड़कें तो टूटी हैं। जितना पैसा सरकारी खजानों में गया, उसका एक चौथाई भी लौटकर औद्योगिक विकास में नहीं लगा।

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